आदि और अनन्त रहित प्रकट सत्य

श्रेणी: Samhitas | लेखक : THT | दिनांक : 03 October 2025 06:56

आदि और अनन्त रहित प्रकट सत्य

वेद शाश्वत सत्य हैं, जिन्हें ईश्वर ने प्राचीन भारत के महान ऋषियों को प्रकट किया। ऋषि (धातु दृश्, देखना) का अर्थ है—“द्रष्टा,” अर्थात् सत्य का साक्षात्कार करने वाला। ऋषियों ने वेदों की रचना नहीं की; उन्होंने केवल उस ज्ञान को देखा और प्रकट किया जो पहले से ही विद्यमान था।

इसी कारण वेदों को श्रुति कहा जाता है—“जो सुना गया।” ये ऋषियों के आध्यात्मिक अनुभव और दिव्य प्रकाशन हैं। ऋषि केवल माध्यम थे, जिनके द्वारा यह ज्ञान मानवता तक पहुँचा। अन्य धर्म जहाँ ईश्वर के दूतों या पैगम्बरों पर आधारित हैं, वहाँ वेद स्वयं ही प्रमाण हैं—क्योंकि वे शाश्वत हैं और स्वयं परमात्मा का श्वास हैं।

भगवान ब्रह्मा ने यह दिव्य ज्ञान ऋषियों को दिया और ऋषियों ने इसे संसार में फैलाया। वैदिक ऋषि साक्षात् ब्रह्म का अनुभव करने वाले महापुरुष थे। उनकी अंतर्दृष्टि से एक सरल, भव्य और परिपूर्ण धर्म तथा दर्शन की प्रणाली उत्पन्न हुई, जिससे सभी धर्मों के प्रवर्तकों ने प्रेरणा ली।

वेद मानवजाति का सबसे प्राचीन आध्यात्मिक ग्रंथ हैं—धर्म का स्रोत, जिससे सभी धार्मिक सत्य अंततः प्रवाहित होते हैं। वे न तो किसी मनुष्य की रचना हैं, न ही किसी काल की उपज। वे शाश्वत, अपौरुषेय और अविनाशी हैं। पुस्तकें नष्ट हो सकती हैं, परंतु वेदों का ज्ञान नष्ट नहीं हो सकता—क्योंकि ज्ञान शाश्वत है।