श्रेणी: Rigveda | लेखक : THT | दिनांक : 05 October 2025 00:07
ऋग्वेद केवल एक धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि मानवता के सबसे पुराने विचारों, प्रार्थनाओं और ज्ञान का संग्रह है।
यह कई स्वतंत्र पुस्तकों का सुव्यवस्थित संकलन है, जिनमें हमारे पूर्वजों की आध्यात्मिकता, काव्य और दर्शन का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है।
इसका वर्तमान स्वरूप स्पष्ट करता है कि ऋग्वेद एक ही युग की रचना नहीं, बल्कि इसमें प्राचीन और बाद के काल दोनों के तत्व मौजूद हैं।
भाषा, शैली और विचारों की विविधता इस तथ्य की पुष्टि करती है। यही विविधता इसे अन्य वेदों की तुलना में अधिक जीवंत और स्वाभाविक बनाती है।
ऋग्वेद का अध्ययन न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि सांस्कृतिक, दार्शनिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी अत्यंत आवश्यक है।
ऋग्वेद चारों वेदों में सबसे पुराना और सबसे बड़ा है। यही भारत की आध्यात्मिक परंपरा का आधारस्तंभ है।
संस्कृत साहित्य और दर्शन की जड़ें ऋग्वेद में मिलती हैं।
यहीं से भारतीय धार्मिक, काव्यात्मक और दार्शनिक विचारधारा का विकास हुआ।
ऋग्वेद का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं।
इसकी प्राचीन भाषा, मिथक और विचारों ने विश्व की भाषाओं, संस्कृतियों और साहित्य को समझने में गहरी भूमिका निभाई है।
वर्तमान में ऋग्वेद की केवल एक ही शाखा उपलब्ध है — शाकल शाखा।
इसमें कुल 10 मण्डल, 1028 सूक्त और लगभग 10,552 मंत्र हैं।
ऋग्वेद पूरी तरह छंद (पद्य) में रचा गया है। इसकी संरचना को चार स्तरों में समझा जा सकता है:
| स्तर | नाम | विवरण |
|---|---|---|
| 1 | मण्डल (Mandala) | ऋग्वेद के 10 मुख्य खंड या पुस्तकें |
| 2 | अनुवाक (Anuvaka) | प्रत्येक मण्डल में कई उपखंड |
| 3 | सूक्त (Sukta) | देवताओं की स्तुति में रचे गए भजन |
| 4 | ऋक् (Rik) | सूक्तों के भीतर आने वाले मंत्र या छंद |
हर सूक्त में देवताओं की स्तुति की गई है, और इन्हीं छंदों का संग्रह ऋग्वेद-संहिता कहलाता है।
ऋग्वेद के हर सूक्त की रचना में तीन महत्वपूर्ण घटक होते हैं:
| तत्व | अर्थ | भूमिका |
|---|---|---|
| ऋषि (Rishi) | सूक्त के रचनाकार या दृष्टा | जिन्होंने देवता का ज्ञान प्राप्त कर सूक्त की रचना की |
| देवता (Devata) | वह देव/देवी जिनकी स्तुति की गई है | जैसे – अग्नि, इंद्र, वरुण, सूर्य आदि |
| छन्द (Chandas) | कविता की लय या मीटर | जिससे सूक्त का काव्यात्मक रूप निर्धारित होता है |
नीचे दी गई तालिका में प्रत्येक मण्डल के सूक्त, मंत्र और उनसे जुड़े प्रमुख ऋषियों की जानकारी दी गई है:
| मण्डल | सूक्तों की संख्या | मंत्रों की संख्या | प्रमुख ऋषि |
|---|---|---|---|
| 01 | 191 | 2006 | मदुच्छन्द, मेधातिथि, गोतम आदि |
| 02 | 43 | 429 | गृत्समद और उनका परिवार |
| 03 | 62 | 617 | विश्वामित्र और उनका परिवार |
| 04 | 58 | 589 | वामदेव और उनका परिवार |
| 05 | 87 | 727 | अत्रि और उनका परिवार |
| 06 | 75 | 765 | भरद्वाज और उनका परिवार |
| 07 | 104 | 841 | वशिष्ठ और उनका परिवार |
| 08 | 103 | 1716 | कण्व, अंगिरा और उनके वंशज |
| 09 | 114 | 1108 | सोम देवता (विभिन्न ऋषियों द्वारा रचित) |
| 10 | 191 | 1754 | विमद, इंद्र, शची और अन्य |
यह तालिका ऋग्वेद की विशालता और विविधता को स्पष्ट रूप से दर्शाती है।
ऋग्वेद के 1028 सूक्तों में से कई विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं, जो आज भी विद्वानों और पाठकों के बीच चर्चा में रहते हैं।
| सूक्त का नाम | विषय / महत्व |
|---|---|
| पुरुष सूक्त | सृष्टि और समाज की रचना का वर्णन |
| हिरण्यगर्भ सूक्त | सृष्टि के आद्य कारण की व्याख्या |
| धन-अन्न-दान सूक्त | समृद्धि और दान की भावना |
| अक्ष सूक्त | मानव के मोह और भाग्य पर दृष्टि |
| नासदीय सूक्त | सृष्टि के रहस्य और दार्शनिक प्रश्न |
| दुःस्वप्न-नाशन सूक्त | नकारात्मक ऊर्जा और भय से मुक्ति |
| यम-यमी संवाद सूक्त | जीवन-मृत्यु और नैतिकता पर संवाद |
इसके अलावा इंद्र, अग्नि, वरुण, उषा, सूर्य, सोम और पृथ्वी जैसे देवताओं को समर्पित असंख्य सूक्त भी हैं, जिनमें वैदिक ऋषियों की काव्यशक्ति और दर्शन झलकता है।
ऋग्वेद केवल भारत की सांस्कृतिक धरोहर नहीं, बल्कि पूरी मानवता का प्राचीनतम ज्ञानकोष है।
यह हमें सिखाता है कि काव्य, दर्शन और आध्यात्मिकता जीवन के तीनों आधार हैं।
ऋग्वेद का अध्ययन हमें न केवल हमारे अतीत से जोड़ता है, बल्कि यह दिखाता है कि ज्ञान, विज्ञान और श्रद्धा – ये तीनों मिलकर ही सभ्यता का निर्माण करते हैं।
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