निरुक्त के अनुसार ऋग्वेद के तीन प्रमुख देवता

निरुक्त के अनुसार ऋग्वेद के तीन प्रमुख देवता

श्रेणी: Nirukta | लेखक : Acharya Shubham Anand ji | दिनांक : 29 October 2025 10:28

निरुक्त के अनुसार ऋग्वेद के तीन प्रमुख देवता

"तिस्र एव देवताः इति नैरुक्ताः" (निरुक्त)


(1) अग्नि — पृथिवी स्थानीय देवता
अग्नि को पृथ्वी पर स्थानीय माना गया है क्योंकि वह जमीन पर प्रकट होती है — जैसे आंगन, यज्ञकुंड या जंगल में।
अग्नि सभी कर्मकाण्डों और यज्ञों में प्रधान देवता है। यह धरती से संबंधित, स्थूल और संसारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है।


(2) इन्द्र या वायु — अन्तरिक्ष स्थानीय देवता
इन्द्र को आकाशीय या वायवीय देवता माना गया है। कभी-कभी यहाँ वायु का भी उल्लेख किया गया है।
यह देवता बादलों, वर्षा, वायु और आकाशीय तत्वों के स्वामी हैं।
इनका क्षेत्र पृथ्वी और आकाश के मध्य — अन्तरिक्ष — में माना जाता है।


(3) सूर्य — द्यु स्थानीय देवता
सूर्य को द्यु (आकाश) में स्थानीय माना गया है।
सूर्य देवता प्रकाश, जीवन और दिव्यता के प्रतीक हैं।
यह आकाश में स्थिर रहते हुए सम्पूर्ण जगत में ऊर्जा और चेतना प्रदान करते हैं।


निष्कर्ष:
निरुक्त के अनुसार सृष्टि की त्रिविध व्यवस्था में तीन देवताओं का प्रमुख महत्व है —

  1. अग्नि → पृथ्वी और यज्ञ के क्षेत्र में।

  2. इन्द्र / वायु → अन्तरिक्ष और वायुमंडल में।

  3. सूर्य → द्यु (आकाश) और प्रकाश के क्षेत्र में।

इस त्रिभाजन से यह स्पष्ट होता है कि प्राचीन वैदिक दृष्टि में देवता केवल आध्यात्मिक सत्ता नहीं थे, बल्कि उनके प्राकृतिक क्षेत्र और कार्य के आधार पर भी वर्गीकृत किए गए थे।