मण्डल क्रम — ऋग्वेद का ज्ञानचक्र और मानवता की एकता का प्रतीक

मण्डल क्रम — ऋग्वेद का ज्ञानचक्र और मानवता की एकता का प्रतीक

श्रेणी: Mandala | लेखक : Acharya anand ji | दिनांक : 28 October 2025 21:15

मण्डल क्रम — ऋग्वेद का ज्ञानचक्र और मानवता की एकता का प्रतीक

मण्डल (Mandala) क्या है?
ऋग्वेद में “मण्डल” का अर्थ है वृत्त या चक्र — अर्थात् ज्ञान का चक्र।
ऋग्वेद को 10 मण्डलों में विभाजित किया गया है।

अभिप्राय:
जैसे 10 मण्डल मिलकर एक ही वेद बनाते हैं, वैसे ही विविध मानव समाज मिलकर एक ही मानवता का निर्माण करते हैं।

आधुनिक उपयोगिता:
विविधता में एकता — अलग-अलग विचार भी एक ही सत्य की खोज हैं।
ज्ञान की यात्रा रेखीय नहीं, बल्कि चक्रीय है — अनेक दृष्टिकोणों से गुजरकर ही संपूर्ण सत्य की प्राप्ति होती है।


आध्यात्मिक मण्डल — ब्रह्मांड का ज्यामितीय रूप
धार्मिक दृष्टि से मण्डल एक पवित्र गोल आकृति है, जो पूरे ब्रह्मांड का प्रतीक मानी जाती है।

अर्थ:
इसमें केंद्र आत्मा का और परिधि संसार का प्रतीक है — यह उपनिषदों के “अहं ब्रह्मास्मि” विचार का दृश्य रूप है।

आधुनिक उपयोगिता:
मण्डल व्यक्ति को केंद्रित, शांत और समग्र बनाता है।
रेगिस्तान के रेत मण्डल की तरह यह सिखाता है कि सब कुछ नश्वर है — जाति, रंग, वर्ग सभी अस्थायी हैं।


मण्डल की सार्वभौमिक शिक्षा:
यह विविधता के भीतर एकता को दर्शाता है।
ध्यान का साधन बनकर व्यक्ति में आंतरिक शांति और समानता की भावना लाता है।
यह अनेक दृष्टिकोणों को स्वीकार करने की क्षमता देता है, जिससे समाज में समरसता और सद्भावना बढ़ती है।


निष्कर्ष:
मण्डल केवल एक संरचना नहीं, बल्कि ब्रह्मांड और मानवता की एकता का प्रतीक है, जहाँ सभी भिन्नताएँ मिलकर एक पूर्ण वृत्त बनाती हैं।

ऋग्वेद में कुल 10 मण्डल हैं, और प्रत्येक मण्डल की शुरुआत अग्नि की स्तुति से हुई है।
ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के प्रथम सूक्त के देवता अग्नि, छंद गायत्री और ऋषि मधुच्छन्दा विश्वामित्र हैं।

अग्नि की प्रथम स्तुति से यह स्पष्ट होता है कि अग्नि प्रज्वलन का प्रथम आविष्कार हमारे ऋषियों द्वारा किया गया, जिससे एक विकसित सुसंस्कृति का आरंभ हुआ और वेद के ज्ञान के आलोक से समस्त विश्व आलोकित हुआ।

प्रथम सूक्त:
“अग्निमीळे पुरोहितं यज्ञस्य देवमृत्विजम् । होतारं रत्नधातमम् ।।”


अन्य प्रमुख मण्डलों का उल्लेख:

  • तृतीय मण्डल: ऋषि विश्वामित्र; इसी मण्डल में गायत्री मंत्र का उल्लेख है।

  • चतुर्थ मण्डल: ऋषि वामदेव; इसमें कृषि का उल्लेख है।

  • सप्तम मण्डल: ऋषि वशिष्ठ; इसमें सुदास और दस राजाओं के युद्ध का वर्णन है, जो पुरुष्णी (रावी) नदी के तट पर लड़ा गया।

  • नवम मण्डल: ऋषि पवमान अंगिरा; यह संपूर्ण मण्डल देवता सोम को समर्पित है।

  • दशम मण्डल: इसमें नासदीय सूक्त के माध्यम से सृष्टि के आरंभ और ब्रह्मज्ञान का बोध कराया गया है।
    इसमें पुरुष सूक्त में विराट पुरुष की चर्चा मिलती है और हिमालय पर्वत तथा उसकी एक चोटी मुजवंत का उल्लेख भी मिलता है।